छत्रपति शिवाजी महाराज जीवन परिचय,इतिहास एंव 2021-2022 की जयंती, वंशज,युद्ध Chhatrapati Shivaji Maharaj Story,history and 2021-2022 Jayanti in hindi- Death,Family,katha

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छत्रपति शिवाजी महाराज जीवन परिचय,इतिहास एंव 2021-2022 की जयंती, वंशज,युद्ध( Chhatrapati Shivaji Maharaj Story,history and 2021-2022 Jayanti in hindi- Death,Family,katha)-

दोस्तों क्या आप सभी लोगों को पता है कि छत्रपति शिवाजी कौन हैं और वे कहाँ के हैं और इनके इतिहास के बारे में जानते हो। दोस्तों तो चलिए जानते हैं।

छत्रपति शिवाजी जी जो थे वो एक भारतीय शासक थे,और इन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा हुआ किया था।छत्रपति जी एक महान,बुद्धिमान,बहादुर शासक होने के साथ- साथ ये एक दयालु शासक  भी थे।शिवाजी बहुमुखी प्रतिभा से धनी थे और ये भारत के निर्माण के लिए बहुत से कार्य किये। छत्रपति एक बहुत ही महान देश भक्ति थे। इन्होंने देश की आजादी के लिए अपना जीवन त्याग दिया।

शिवाजी का जन्म पूना में हुआ था और उस समय मुगलों का साम्राज्य भारत मे फैल चुका था, तभी बाबर भारत मे आकर मुगल  एम्पायर खड़ा कर दिया था।तभी शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ दी और कुछ ही समय में महाराष्ट्र में समस्त  मराठा साम्राज्य खड़ा कर लिया और शिवाजी ने मराठियों के लिए बहुत से कार्य किये। इसी वजह से छत्रपति शिवाजी को महाराष्ट्र में एक भगवान की तरह पूजा जाता ।

छत्रपति शिवाजी महाराज जीवन परिचय(Chhatrapati Shivaji Maharaj Jivan Charitra- 

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुशिवजी जीवन परिचय
    1.  पूरा नाम Full Name  शिवाजी शहाजी राजे        भोसले
    2.    जन्म Birth     19 फरवरी 1630
    3.    जन्म स्थान    शिवनेरी दुर्ग,पुणे 
    4.  माता -पिता   जीजाबाई, शहाजी राजे
    5.  पत्नी   साईंबाई ,सकबार बाई    पुतलाबाई,सियाराबाई
  6.


    7. 
    बेटे बेटी


       मृत्यु 
  संभाजी भोसले या शम्भू जी राजे, दीपाबाई,सबूबाई,  कमलाबाई , अंबिकाबाई        3 अप्रैल 1680

छत्रपति शिवजी आरंभिक जीवन(Chhatrapati Shivaji Maharaj Initial Life)-

दोस्तों चलिए अब शिवजी के आरंभिक जीवन के बारे में जानते हैं। शिवाजी का जन्म पुणे जिले के जुन्नार गांव के शिवनेरी किले में हुआ था। शिवजी का नाम उनकी माता ने भगवान शिव पर रखा था,जिन्हें वो बहुत ही प्रेम करती थी। शिवाजी के पिता बीजापुर के जनरल थे।जो उस समय डेक्कन के हाथों में था। वे अपनी मां के बहुत ही करीब थे।iइनको माता बहुत ही धार्मिक प्रवर्ति की थी और यही प्रभाव शिवाजी पर भी था।उन्होंने रामायण और महाभारत को बहुत ही ध्यान से पढ़ा था और उससे बहुत सा ज्ञान अर्जित किया और उसको अपने जीवन मे भी उतारा। शिवाजी को हिन्दुत्व का बहुत ज्ञान था।उन्होंने अपने पूरे जीवन में हिंदुओं को माना और उनके लिए बहुत से कार्य भी किये।

इनको जो पिता थे उन्होंने दूसरी शादी कर ली और वे शादी करके कर्नाटक चले गये।अपने बेटे शिवा और पत्नी जीजाबाई को किले की देख रेख करने वाले दादोजी कोंडदेव के पास छोड़ दिए।शिवाजी को हिंदुओ की शिक्षा कोंडदेव से मिली थी,और साथ ही कोंडाजी ने उन्हें सेना के बारे में, घुड़सवारी के बारे में और राजनीति के बारे में बहुत सी बातें बताई।

शिवाजी बहुत ही तेज दिमाग वाले और बुद्धिमान व्यक्ति थे।छत्रपति शिवाजी ने बहुत अधिक शिक्षा नही ग्रहण की थी।लेकिन दुसरो के द्वारा उनको जो भी ज्ञान दिया जाता था तो वे बहुत ही मन लगाकर सिखाते थे। जब शिवाजी 12 साले के थे वे अपने भाई सँभाजी और माता के साथ बैंगलोर गए और उन्होंने वहां शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने 12 साल की उम्र में साईबाई से विवाह किया था।

छत्रपति शिवाजी महाराज की लड़ाइयां(Chhatrapati Shivaji Maharaj Fight)-

दोस्तों अब हम आप सभी को शिवाजी की लड़ाइयों के बारे में बताएंगे जिनसे आप सभी लोग अनजान हैं।

छत्रपति शिवाजी 15 साल की उम्र में ही पहला युद्ध लड़ा और तोरना पर हमला करके उसे जीत लिया।इसके बाद शिवाजी ने कोंडाना और राजगढ़ किले को भी जीत कर वहाँ भी झंडा फहराया। शिवाजी की बढ़ती हुई पॉवर को देखकर सुल्तान ने शाहजी को कैद कर लिया। कोंडाना के किले को शिवाजी व उनके भाई संभाजी उसको वापस कर दिया। जिसके बाद उनके पिता जी को छोड़ दिया गया था। शाहजी की रिहाई के बाद वे अस्वस्थ रहने लगे और 1964-65 के बीच उनकी मौत हो गई। इसके बाद शिवाजी ने पुरंदर और जवेली की हवेली में भी मराठा का ध्वज फहराया। फिर बीजापुर के सुल्तान ने 1969 में शिवाजी के खिलाफ अफजल खान की एक सेना भेज दी और हिदायत दी की शिवाजी जी को जिंदा या मरा हुआ लेकर आये।

अफजल खान ने शिवाजी को मारने की बहुत ही बड़े-बड़े प्रयास किये पर शिवाजी ने अपने चतुराई से ही अफजल खान को ही मार डाला और शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सुल्तान को प्रतापगढ़ में हराया था।

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और यहां पर शिवाजी को बहुत से हथियार मिले जिससे उनकी सेना ओर भी ताकतवर हो गई।

बिजापुर के सुल्तान ने एक बार फिर से एक बड़ी सेना भेजी ,जिसे बार रुस्तम जनाम ने नेतृत्व किया, लेकिन इस बार भी शिवाजी की सेना ने उन्हें कोल्हापुर  में हर दिया।

शिवाजी व मुगलों की लड़ाई(Shivaji Fights)-

शिवाजी एक ऐसे क्रांतिकारी व्यक्ति थे कि वे जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए उनके उतने ही दुश्मन बढ़ते गए। शिवाजी ने 1657 में मुगलों के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी थी और उस समय औरंजेब एम्पायर मुगलों के हक में था,और उस समय औरंजेब ने शाइस्ता खान की जो सेना थी उसको शिवाजी के खिलाफ खड़ा कर दिया।उन्होंने पूना में अपना अधिकार जमा लिया और उस सेना का वही विस्तार किया। शिवाजी ने एक रात अचानक से पूना पर हमला कर दिया और हजारों मुगल सेना के लोग मारे गए। लेकिन इस सेना का लीडर शाइस्ता खान भाग निकला। इन सभी के बाद सूरत में भी शिवाजी ने अपना झंडा फहराया।

पुरंदर की संधि-

औरंजेब जो था उसने हार नही मानी और इस बार उसने अम्बर के राजा जय सिंह और दिलीर सिंह को शिवाजी के खिलाफ खड़ा कर दिया।फिर जय सिंह उन सभी किलो को जीत लेता है। जिनको शिवाजी ने जीता था और पुरन्दरपुर में उनको हरा दिया।इस हार के बाद शिवाजी को मुगलों के साथ समझौता करना पड़ा।शिवाजी को 23 किलो के बदले मुगलों का साथ देना पड़ा और वे बीजापुर के खिलाफ मुगलों के साथ खड़े रहे।

शिवाजी का छुपना-

औरंजेब एक ऐसा व्यक्ति था कि समझौते के बाद भी उसने शिवाजी की के साथ अच्छा व्यवहार नही किया,और उसने शिवाजी और उनके बेटे को जेल में बंद कर दिया। फिर भी शिवाजी अपने बेटे के साथ आगरा से भाग निकले।जब शिवाजी अपने घर पहुच गए तो उन्होंने नई ताकत के साथ मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ दी ,और इसके बाद शिवाजी जी को औरंजेब ने राजा मान लिया,और 1664 में शिवाजी महाराष्ट्र के एक अकेले शासक बन गए।फिर उन्होंने हिन्दू रिवाजों के अनुसार शासन किया।

छत्रपति शिवाजी की राज्याभिषेक-

फिर 1674 में शिवाजी ने महाराष्ट्र में हिन्दू राज्य की स्थापना की,जिसके बाद उन्होंने अपना राज्याभिषेक कराया। क्या आपको पता है कि शिवाजी कुर्मी जाति के थे। जिन्हें उस समय शुद्र ही माना जाता था और इस कारण से ब्राह्मण ने उनका विरोध किया और उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया। बनारस के ब्राम्हणों को भी शिवाजी ने न्योता दिया पर उन्होंने भी मना कर दिया।तब शिवाजी ने उन लोगो को घुस देकर मनाया था इसके बाद उनका राज्याभिषेक जाकर हो पाया,और यही पर उनको छत्रपति शिवाजी की उपाधि प्राप्त हुई। फिर इसके बाद उनकी माता जीजाबाई का उनके राज्याभिषेक के 12 दिनों के बाद दिहान्त हो गया। जिससे के बाद उन्होंने शोक मनाया ,और फिर से अपना राज्याभिषेक कराया। इस राज्याभिषेक में दूर -दूर से पंडितो को बुलाया गया था।जिससे इसमे बहुत खर्चा हुआ और शिवाजी ने अपने नाम का सिक्का भी चलाया था।

सभी धर्मों का आदर-

शिवाजी एक दयालु व्यक्ति थे वे जिस प्रकार अपने धर्म की उपासना करते थे उसी प्रकार वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे,और इसका उदाहरण उनके मन मे जो रामदास के लिए जो भावना थी उससे उजागर होता है।शिवाजी रामदास जी को  पराली का किला दे देते हैं।जिसको बाद में सज्जनगढ़ के नाम से जाना जाने लगा। शिवाजी और रामदास जी के सम्बन्धो का बखान की कविताओं के शब्द में है।धर्म की रक्षा की विचारधारा शिवाजी ने अपने धर्म परिवर्तन का बहुत ही कड़ा विरोध किया।

शिवाजी जो थे वे अपने ध्वज का रंग नारंगी रखा था जो कि हिंदुत्व का प्रतीक है,और इसके पीछे भी एक कथा है ।तो चलिए जानते हैं।

शिवाजी जो थे वो राम दास से बहुत ही प्रेम करते थे क्योंकि इनसे शिवाजी ने बेहद शिक्षा ग्रहण की थी ,और एक बार ऐसा हुआ कि रामदास शिवाजी के ही सम्राज्य में भीख मांग रहे थे ,तभी शिवाजी ने उनको देखा सुर वे बहुत ही दुखी हुए और वे उनको अपने महल में ले गए।और उनका आग्रह उनके चरणों से गिर कर किया,कि वे भीख न मांगे,बल्कि ये सारा का सारा सम्राज्य ले ले। शिवाजी की भक्ति देखकर रामदास बहुत ही प्रसन्न हुए ,लेकिन वे सांसारिक जीवन से दूर रहना चाहते थे,इसलिए उन्होंने सम्राज्य का हिस्सा बनने से मना कर दिया। फिर उन्होंने कहा कि वे अच्छे से अपने साम्राज्य का संचालन करे,और उन्हें अपने वस्त्र का एक टुकड़ा फाड़ कर दिया और बोले कि इसे सपना राष्ट्रीय ध्वज बनाओ , और उनसे कहे कि ये स्वेद तुम्हे मेरी याद दिलाएगा और मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा।

छत्रपति शिवाजी की मृत्यु(Chhatrapati Shivaji Maharaj Death)-

दोस्तों क्या आप सभी को पता है कि शिवाजी की मृत्यु कब हुई ।तो चलिये जानते हैं।

शिवाजी बहुत ही कम उम्र में ही हम सब को छोड़कर कर चले गए थे।क्योंकि राज्य की चिंता उनको काफी ज्यादा होने लगी थी जिसकी वजह से उनकी तबियत खराब रहने लगी और लगातार 3 हफ़्तों तक वे तेज बुखार में रहे,और फिर 3 अप्रैल 1680 में इनका दिहान्त हो गया। जब इनकी मौत हुई थी तो वे 50 साल के ही थे। उनके मौत के बाद भी उनके वफादारों ने उनके साम्राज्य को संभाले रखा था और मुगलों से लड़ाई जारी रही।

शिवाजी एक बहुत ही महान हिन्दू रक्षक थे।और शिवाजी ने एक कूटनीति बनाई थी, की किसी भी साम्राज्य में पूर्व सूचना के आक्रमण किया जा सकता है,जिसके बाद वहां के शासक को अपनी गद्दी छोड़नी होती थी। इस नीति को गनिमी कावा कहा जाता था, और इसके लिए शिवाजी को हमेशा याद किया जाता है।इन तरह से शिवाजी ने हिन्दू राज्य को एक नया रूप दिया अगर वे ना होते तो आज हिन्दू राज्य ना होता और पूरी तरह से मुगलो का शासन होता।इसी कारण से मराठा में शिवाजी को भगवान मानते हैं।

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छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती2022 में कब है?

शिवाजी एक बहुत ही महान और सच्चे देशभक्त थे इस लिए उनकी जयंती हर साल की तरह इस साल भी 29 फरवरी को मनाई जाएगी।

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Neha Yadav
Neha Yadav
यह लेख Hindi Target की लेखिका NEHA YADAV के द्वारा लिखा गया है | यदि आपको लेख पसंद आया हो तो Hindi Target Team आप से उम्मीद रखती है कि आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा Share करेंगे | धन्यवाद !

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