तेलंगाना के गाचीबोवली में 400 एकड़ जंगल पर संकट, छात्रों का संघर्ष और जानवरों की चीख़ से गूंजा शहर

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तेलंगाना के हाईटेक सिटी कहे जाने वाले गाचीबोवली क्षेत्र में 400 एकड़ में फैले शहरी जंगल की कटाई और नीलामी को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। एक ओर सरकार इस क्षेत्र को “स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट ज़ोन” में बदलने की योजना पर काम कर रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय नागरिक, विश्वविद्यालय के छात्र और अब वन्यजीव भी इस बदलाव के खिलाफ ‘आवाज़’ उठाने लगे हैं।

तेजी से कटे पेड़, जानवरों की चीख और शहर की सड़कों पर उनकी दस्तक
8 मार्च से 28 मार्च के बीच जंगल के अंदर लगभग 80-100 एकड़ क्षेत्र में पेड़ काट दिए गए। जब भारी मशीनें जंगल में घुसीं, तो सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि जानवर भी बेचैन हो उठे। चीतल, सियार, मोर और अन्य पक्षी तेज़ आवाज़ में चिल्लाने लगे। स्थानीय लोगों ने बताया कि कई जानवर और पक्षी घबराकर पास की सड़कों पर आ गए।

“एक रात को हमने देखा कि जंगल से दो चीतल दौड़ते हुए रोड पर आ गए थे, और मोर लगातार जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। वो डर और ग़ुस्से से भरे थे,” – एक स्थानीय निवासी ने बताया। भारी मशीनरी का उपयोग: शुरुआत में, 30 मार्च को आठ बुलडोज़र और खुदाई करने वाली मशीनें (एक्सकेवेटर) लाई गईं। रातोंरात इनकी संख्या बढ़ाकर 40 कर दी गई, जिससे कटाई का काम तेजी से आगे बढ़ा।

स्थापना दिवस पर छात्रों का उबाल
13 मार्च को हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के मौके पर छात्रों ने विरोध का बिगुल बजाया। ‘Reclaim Our Rocks’ आंदोलन के तहत सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने कैंपस से जंगल तक पैदल मार्च किया, पोस्टर लहराए और “जंगल नहीं, तो जीवन नहीं” के नारे लगाए। कुछ छात्रों ने भूख हड़ताल भी शुरू की।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: “तुरंत रुकें पेड़ काटने के काम”
विरोध के बढ़ते स्वर के बीच 3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कटाई और विकास कार्यों पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया। इस आदेश को छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने ‘प्राकृतिक न्याय’ की पहली जीत बताया।

सरकार का तर्क और जनता की मांग
तेलंगाना सरकार का कहना है कि यह जमीन वर्षों से बेकार पड़ी थी और इससे ₹10,000 करोड़ की आमदनी हो सकती है। लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह जंगल न केवल इंसानों के लिए, बल्कि जानवरों और पक्षियों के लिए भी जीवनदायिनी है।

क्या यह टकराव थमेगा या और तेज़ होगा?
अब जबकि जानवर जंगल से बाहर निकलने लगे हैं और छात्र सड़कों पर हैं, यह विवाद सिर्फ विकास बनाम पर्यावरण का नहीं रहा — यह अब अस्तित्व और इंसान-प्रकृति के सहअस्तित्व की लड़ाई बन चुका है।

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